बंग समुदाय में महालया का विशेष महत्व,की जाती हैं समुदाय करता है विशेष पूजा
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बंग समुदाय में महालया का विशेष महत्व,की जाती हैं समुदाय करता है विशेष पूजा

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-पितृ पक्ष के अंत व देवी पक्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं महालया

नारायणपुर (कुशल चंद पारख):-

महालया का हिंदू धर्म में विशेष कर बंगाली समुदायों में इस दिन का विशेष महत्व है. यह दिन पितृ पक्ष के अंत का प्रतीक भी है जिसे पितरों के श्राद्ध के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इतना ही नहीं महालया देवी पक्ष की शुरुआत का शंखनाद भी करता है विशेष रूप से बंगालियों के लिए महालया का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन का अर्थ यह है कि दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत होती है.

देवी पक्ष की शुरुआत का प्रतीक

महालया, तिथि और समय महालया आमतौर पर भाद्र माह के अंधेरे पखवाड़े के आखिरी दिन पड़ता है यह तिथि चंद्र गणना के आधार पर निर्धारित की जाती है, और यह देवी पक्ष की शुरुआत का प्रतीक है, जो देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित एक विशेष समय है।

महालया परंपरा, रीति-रिवाज

महालय पर, हर बंगाली परिवार सुबह सूरज उगने से पहले उठता है. यह अवसर विभिन्न प्रथाओं और अनुष्ठानों से जुड़ा हुआ है. बहुत से लोग इस दिन अपने पूर्वजों की दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं और पितरों का ‘तर्पण’ करते हैं. जरूरतमंदों को भोजन और सामग्री दान करते हैं. ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं. कुछ हिंदू परिवार इस दिन पितृ तर्पण की रस्म अदा करते हैं,

बंग समाज मे होती हैं विशेष पूजा अर्चना

बंग समाज के जिलाध्यक्ष कार्तिक नन्दी ने बताया महालय पर्व के दिन सुबह 4:00 बजे मां दुर्गा के मंदिर से विधिवत पूजा अर्चना कर डाक (ढोल) बजाकर काशी वह उलुध्वनि के साथ बंग समाज के सभी माताए बहने एवं समाज के सदस्यों द्वारा केला पेड़ में जाकर पूजा अर्चना हेतु केला पेड़ को विधिवत शुद्धिकरण करते हुए पूजा किया जाता है एवं पूजा के उपरांत माता के पूजा हेतु केला पेड़ एवं पूरे केला के थोर को दाव (हाशिया)से काटा जाता है और पूजा अर्चना के बाद वापस उलुध्वनि डाक बजाकर वापस मंदिर में आना पड़ता है और मंदिर में माता के मूर्ति के समक्ष पूजा अर्चना कर उसे केला के थोर को पूजा कर षष्ठी पूजा से लेकर दशमी पूजा तक नियमित रूप से इस केला से ही पूजा की जाती है इसीलिए इसे माता जी के मंदिर में एक जुट के बोरा में भरकर उसे ऊपर में रख दिया जाता है जो की दुर्गा पूजा केला पककर तैयार हो जाता है और उसी से ही माता की पूजा की जाती है।

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